उत्तराखंड राज्य स्थापना के 22 साल, औद्योगिक विकास ने पकड़ी रफ्तार, पलायन पर रोक नहीं, खाली हो रहे गांव

उत्तराखंड राज्य स्थापना के 22 साल, औद्योगिक विकास ने पकड़ी रफ्तार, पलायन पर रोक नहीं, खाली हो रहे गांव

देहरादून। उत्तराखंड ने 09 नवंबर को अपना स्थापना के 22 साल पूरे कर लिए। राज्य नौ नवंबर को अब अपने 23वें साल में प्रवेश कर गया है। बीते 22 साल में उत्तराखंड ने काफी कुछ उपलब्धियां हासिल की हैं लेकिन बहुत कुछ और भी ऐसा है जो अभी पाना है…

उपलब्धियां
औद्योगिक विकास ने पकड़ी रफ्तार
एनडी तिवारी सरकार के दौरान उत्तराखंड में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए सिडकुल की स्थापना की गई थी। हरिद्वार, देहरादून और यूएसनगर जिले में स्थापित सिडकुल में पांच हजार के करीब बड़े और मध्यम श्रेणी के उद्योग स्थापित हुए। इससे पहले उत्तराखंड में बड़े उद्योगों की संख्या सौ भी नहीं थी। तिवारी सरकार के दौरान राज्यभर में हुए औद्योगिक विकास की वजह से उत्तराखंड देश के औद्योगिक मानचित्र पर स्थापित हो पाया। हालांकि, तिवारी सरकार के बाद औद्योगिक विकास की रफ्तार अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ पाई।

सड़कों का तेजी के साथ हुआ विकास
उत्तराखंड बनने के बाद सड़कों के विकास में तेजी आई। केंद्र और राज्य के सहयोग से बनी सड़कों की वजह से यातायात सुगम हुआ। दूरदराज के गांवों तक भी सड़क पहुंची। वर्तमान में तीस हजार किमी सड़कें बन चुकी हैं। केंद्र सरकार के ऑलवेदर रोड प्रोजेक्ट की वजह से चारधाम रूट की सड़कों का कायाकल्प हुआ है। इससे चारधाम यात्रा के साथ स्थानीय लोगों का सफर भी आसान हुआ। इसके अलावा दिल्ली से दून के लिए बन रहे एक्सप्रेसवे, भारतमाला और पर्वतमाला परियोजना से सड़क तथा रोपवे संपर्क और बेहतर होने जा रहा है।

अर्थव्यवस्था ने नई ऊंचाइयों को छुआ
उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था ने भी अलग राज्य बनने के बाद विकास किया। पूर्व में करीब 17 हजार करोड़ की अर्थव्यवस्था आज तीन लाख करोड़ रुपये पर पहुंचने वाली है। उत्तराखंड जब बना तो प्रति व्यक्ति आय 13,762 रुपये थी, जो अब 1.96 लाख रुपये के पार पहुंच गई है। हालांकि, इस अवधि में राज्य पर लगभग एक लाख करोड़ रुपये का कर्ज भी चढ़ा। वेतन और पेंशन का बोझ बढ़ रहा है। जबकि अवस्थापना विकास के लिए पर्याप्त बजट नहीं है। हालांकि, केंद्रीय योजनाओं के जरिए राज्य को अवस्थापना विकास के लिए काफी बजट मिला है।

हर घर तक पहुंची बिजली और पानी
उत्तराखंड का हर गांव और हर घर बिजली से रोशन है। ऊर्जा निगम के दावों के मुताबिक, हर घर बिजली कनेक्शन लग चुका है। बिजली कनेक्शनों की संख्या 27 लाख के पार पहुंच गई है। इसी क्रम में जहां सौभाग्य योजना में घरों को बिजली से जोड़ा गया। दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत पावर सप्लाई सिस्टम मजबूत किया गया। इसी प्रकार जल जीवन मिशन प्रोजेक्ट के तहत तेजी से काम हो रहा है। राज्य के कुल 15 लाख घरों तक नल से जल पहुंचाया जाना है। बीते दो साल में करीब दस लाख घरों में पानी पहुंचाया भी जा चुका है।

नाकामियां
पलायन पर रोक नहीं, खाली हो रहे गांव
पहाड़ का पानी और जवानी रोकने के मकसद से बने उत्तराखंड में बीते 22 साल में 32 लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं। 2018 की उत्तराखंड पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य गठन के बाद उत्तराखंड के 1,700 गांव वीरान हो चुके हैं। करीब हजार गांव ऐसे हैं, जहां सौ से कम लोग रहते हैं। बीते दस साल में 474 गांवों में आबादी 50ः तक घट गई है। पलायन के चलते सामरिक चिंताएं बढ़ी हैं। पलायन रोकने को बने आयोग के पदाधिकारी खुद पौड़ी से पलायन कर दून सचिवालय में जम गए।

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में अपेक्षित सुधार नहीं
शिक्षा मामले में उत्तराखंड की तस्वीर हाल में केंद्र सरकार के परफार्मेंस इंडेक्स से साफ हो चुकी है। उत्तराखंड शिक्षा के विभिन्न मानकों में महज चार साल में ही 18वें से 34वें स्थान पर पहुंच गया। उधर, स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार नहीं हुआ है। लोगों को मजबूरी में प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है। राज्य गठन के बाद 22 साल में न तो कभी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी दूर हुई और न पैरामेडिकल और नर्सिंग के पद पूरी तरह भरे जा सके। हैरानी की बात है कि चार मेडिकल कॉलेज होने के बावजूद अधिकांश स्टाफ और डॉक्टर संविदा पर हैं।

उत्तराखंड में बदहाल कृषि और बागवानी
राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों में विकास के लिए कृषि और बागवानी को महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। खासकर, बागवानी को पर्वतीय क्षेत्रों में गेमचेंजर माना जाता है, लेकिन इस सेक्टर के हाल भी संतोषजनक नहीं। उत्तराखंड को 22 साल होने जा रहे हैं और आज भी उत्तराखंड में हिमाचल और कश्मीर के सेब ही छाए रहते हैं। और तो और, विभाग अब तक अपने क्षेत्रफल, उत्पाद तक के विश्वसनीय आंकड़े भी जारी नहीं कर पाया है। हाल में उद्यान निदेशालय ने सभी डीएचओ को पत्र लिखते हुए वर्तमान आंकड़ों की प्रमाणिकता पर सवाल उठाए थे।

पर्यावरण पर चिंता के बादल
कोरोनाकाल में लॉकडाउन में सबकुछ थमने के बाद आबोहवा में जो सुधार देखने को मिला, उससे सबक लेकर दून, हल्द्वानी में लोगों की जागरूकता एवं सिस्टम के प्रयासों से प्रदूषण के स्तर में सुधार हुआ। ऋषिकेश, हरिद्वार, रुद्रपुर और काशीपुर में हालात नहीं सुधरे। केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत वर्ष 2026 तक वायुमंडल में प्रदूषणकारी कणों (पीएम) के स्तर में 40 प्रतिशत तक कमी का नया लक्ष्य रखा है। 132 शहरों का सर्वेक्षण होगा। उत्तराखंड से इनमें ऋषिकेश, देहरादून और काशीपुर शामिल हैं।

Samachaar India

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