कांग्रेस में अध्यक्ष

कांग्रेस में अध्यक्ष

अजय दीक्षित
कांग्रेस में अध्यक्ष के लिए अंतत: चुनाव सम् हो गया । सोनिया गांधी परिवार के वारिस राहुल गांधी काफी लम्बे अरसे से कह रहे थे कि पार्टी को युवा लोगों की जरूरत है, तभी पार्टी में नए रक्त व ऊर्जा का संचार होगा। कई हल्कों में यह प्रश्न भी उठने लगा था कि क्या राहुल गांधी स्वयं को युवा नहीं मानते ? आखिर क्या कारण है कि वे पार्टी में युवाओं की महत्ता को स्वीकार भी कर रहे हैं और स्वयं जिम्मेदारी संभालने को तैयार भी नहीं हैं । तब यह खुलासा हुआ था कि सोनिया परिवार ने निर्णय किया है कि इस बार परिवार के बाहर के किसी व्यक्ति को भी मौका देना चाहिए । लेकिन इसका भी एक सरल और पार्टी में पुराने समय से प्रचलित तरीका था ही ।

सोनिया गांधी किसी भी बाहरी व्यक्ति को पार्टी का अध्यक्ष मनोनीत कर सकती थीं । लेकिन देश में बहुत समय से चर्चा चल रही थी कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र गायब है । इसलिए इस मौके पर पार्टी के भीतर छिपे हुए आंतरिक लोकतंत्र का भी प्रदर्शन किया जा सकता था । कांग्रेस को पुर्नजीवित करने की इच्छा से यदि ये सारे उपक्रम किये जाते तो इसमें कोई बुराई नहीं थी । कम से कम कांग्रेस को स्वयं को मूल्यांकित करने और आम भारतीय जन की आकांक्षाओं के अनुरूप स्वयं को ढालने का एक अवसर अवश्य मिल जाता । लेकिन सोनिया परिवार की मंशा सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे वाली थी । परिवार चाहता था कि पार्टी का नियंत्रण भी उनके हाथ में रहे और अध्यक्ष के चुनाव इत्यादि की सामाजिक-राजनीतिक रस्म भी पूरी हो जाये । इसलिए किसी ऐसे यजमान की तलाश हुई जो ये सारी रस्में बखूबी निभाता रहे लेकिन पुरोहित के नियंत्रण से बाहर भी न जाये । सोनिया परिवार को लगा कि राजस्थान के अशोक गहलोत इन सभी मापदण्डों पर पूरे उतरते हैं । इसलिए उन्हें अध्यक्ष बना कर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की स्क्रिप्ट लिखी गई । लेकिन इस पूरी रणनीति में एक कमी रह गई । सोनिया गांधी परिवार शायद यह अनुभव नहीं कर पाया कि अब स्वयं परिवार के राजनीतिक रुतबे का पार्टी के भीतर ही अवमूल्यन हो चुका है । सोनिया परिवार के बाहर के व्यक्ति के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का पद उतना आकर्षक नहीं है । क्योंकि न तो सोनिया परिवार के नाम से सत्ता प्राप्ति की आशा बंधती है और न ही नये कांग्रेस अध्यक्ष को यह परिवार सचमुच संगठनात्मक सत्ता हस्तांतरित करेगा, इसकी आशा की जा सकती है ।

इसलिए अशोक गहलोत तो कन्नी काट ग्रे । उनका कहना था कि यदि उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री के साथ-साथ अध्यक्ष भी बना दिया जाता है तो वे पूरी ईमानदारी से परिवार के हितों को ध्यान में रखते हुए अध्यक्ष पद की सभी रस्में निभाते रहेंगे । अब जब अशोक गहलोत की स्वामिभक्ति ही संदिग्ध दिखाई देने लगी थी तो उस पर दांव खेलना परिवार के लिए ख़तरे से खाली नहीं था । जब सोनिया परिवार को घर से बाहर के राजनीतिक यथार्थ का ज्ञान हो गया तो उसने युवा की जरूरत, पार्टी में युवा चेतना व ऊर्जा की जरूरत इत्यादि राजनीतिक जुमलेबाजी को त्याग कर कर्नाटक के अस्सी वर्षीय
मल्लिकार्जुन खडग़े को ही अध्यक्ष बनाने का निर्णय कर लिया। अब साफ-साफ यह भी कहा जाने लगा कि पार्टी में सर्वसम्मति से ही चुनाव की परम्परा है । लेकिन केरल के शशि थरूर इससे सहमत नहीं हुये ।

यदि सोनिया गांधी द्वारा भारत की कांग्रेस पार्टी पर शिकंजा कस लेने से पूर्व के पार्टी के इतिहास को भी निरंतरता में ही जोड़ लिया जाये तो पार्टी की उम्र 137 साल की ठहरती है । अब तक के इतिहास में अध्यक्ष पद को लेकर केवल चार बार घमासान मचा था । यह उसी प्रकार का पांचवां घमासान कहा जा सकता है । लेकिन तथाकथित हाई कमांड या फिर नेहरू परिवार जिसे आजकल सोनिया गांधी-नेहरू परिवार भी कहा जाने लगा है, की इच्छा के विपरीत चुन कर आये कांग्रेस अध्यक्ष को पद पर बने नहीं रहने दिया गया । गांधी की समय में यह कांड सुभाष चंद्र बोस के साथ हुआ था और जवाहर लाल नेहरू के समय यह पुरुषोत्तम दास टंडन के साथ हुआ था ।

सोनिया गांधी के काल में यही कांड सीताराम केसरी के साथ हुआ था । बीच बीच में पार्टी के भीतर की लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रदर्शन करने के लिए चुनाव इत्यादि करवाने की परम्परा भी पार्टी में रही है । अब तक मां-बेटा आपस में ही अध्यक्ष पद की अदालत बदली करते रहे हैं । जब गिनती पूरी हुई तो कुल मिला कर 9385 वोटों में से खडग़े को 7897 वोट मिले। शशि थरूर को 1072 वोट मिले । 416 वोट रद्द करार दिए गए क्योंकि वोट डालने वाले को वोट डालना आता नहीं था । वैसे शशि थरूर को बधाई दी जानी चाहिए कि उन्होंने पार्टी में परिवार की इजारेदारी के खिलाफ आखिर लडऩे का साहस तो दिखाया । वैसे भी 22 साल पहले जितेन्द्र प्रसाद को सोनिया जी के मुकाबले 96 वोट मिले थे और शशि थरूर ने 1072 वोट लेकर परिवार के किले में ज्यादा सेंध लगाई है । इसके लिए वे निश्चय ही बधाई के पात्र हैं । लेकिन मल्लिकार्जुन खडग़े के लिए सिर मुंडाते ही ओले पड़े जैसी स्थिति हो गई है । हिमाचल प्रदेश और गुजरात की विधानसभाओं के चुनाव सिर पर आ गए हैं । खडग़े इसमें क्या कर सकेंगे, यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन गांधी परिवार को हार का ठीकरा खडग़े के सिर पर फोडऩे का एक बहाना अवश्य मिल गया है ।

Samachaar India

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