कॉप 27: सफलता की कम उम्मीद के साथ शुरू हुआ संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन

कॉप 27: सफलता की कम उम्मीद के साथ शुरू हुआ संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन

कॉप 27 के लिए मिस्र में अनेक राष्ट्र इकट्ठा हुए हैं। अमीर देश, अपने वादों को निभाने में विफल रहे हैं, जिसके लिए कुछ हद तक यूक्रेन में रूस के युद्ध को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इन स्थितियों में अविश्वास बढ़ा है, खासकर एक ऐसे वर्ष में, जो दक्षिण एशिया लिए बार-बार जलवायु संकट का वर्ष बन गया।

Joydeep Gupta
7 नवंबर, 2022

इस साल का संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन, यानी कॉप 27 मिस्र के शर्म अल-शेख में हो रहा है। विकासशील दुनिया चाहती है कि विकसित दुनिया से वित्त पोषण, इसके एजेंडे का प्रमुख मुद्दा हो। विकासशील देश, ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करने; जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूलन; और सबसे जरूरी बात, आपदाओं- जो जलवायु परिवर्तन के चलते बार-बार आ रही हैं और तीव्र बन चुकी हैं- से होने वाले अपूरणीय नुकसान और क्षति (लॉस एंड डैमेज) से निपटने, में मदद के लिए धन चाहते हैं।

विकसित देशों – विशेष रूप से यूरोपीय देशों – का कहना है कि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण और इसके परिणामस्वरूप ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि के कारण उनके पास पैसे नहीं है। कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाएं मंदी की कगार पर हैं, ऐसे में पर्यवेक्षकों को उनसे उम्मीद नहीं है कि वे विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए सार्वजनिक वित्त की एक महत्वपूर्ण राशि देने के लिए आगे आएंगे।

नतीजतन, इस साल के संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन से किसी मजबूत परिणाम की उम्मीद, शायद वैश्विक जलवायु वार्ता के तीन दशक के इतिहास में अपने सबसे निचले स्तर पर है।

यह स्थिति इस वर्ष के ढलान के साथ आई है, जिसकी शुरुआत इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की उन चेतावनियों के साथ हुई थी कि अगर मानव जाति को तापमान के एक स्तर को रोकना है, अन्यथा वह इसका सामना करने में असमर्थ हो जाएगी, तो वैश्विक ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) का उत्सर्जन 2030 तक आधा हो जाना चाहिए और 2050 तक शून्य तक पहुंच जाना चाहिए।

भयानक चेतावनियों का एक साल

आईपीसीसी की ‘कोड रेड’ चेतावनी को अक्टूबर 2022 में रिपोर्टों की एक श्रृंखला से और मजबूती मिली। दरअसल, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) ने वातावरण में तीन मुख्य जीएचजी – कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के रिकॉर्ड स्तर की सूचना दी।

यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) ने बताया कि जीएचजी उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रों की वर्तमान प्रतिज्ञा, (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या एनडीसी कहा जाता है) भले ही पूरी तरह से प्राप्त हो जाए, फिर भी, औसत वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने में विफलता ही हाथ लगेगी। जैसा कि पेरिस समझौते में सभी देशों ने प्रतिज्ञा की थी कि औद्योगिक काल के पूर्व के स्तर की तुलना में वैश्विक तापमान बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस से भीतर रखने के लिए अपने आकांक्षी लक्ष्यों को छोड़ना होगा। इसके बजाय, 2100 तक वैश्विक तापमान में 2.4-2.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अनुमान है।

यूएनएफसीसीसी की गणना है कि कि विकासशील देशों को वर्तमान एनडीसी को भी पूरा करने के लिए 2030 तक 5.6 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी।

इस वर्ष हम लगातार जोखिमों और एक संकट के ऊपर दूसरे संकट के आने जैसे गंभीर समय में इकट्ठा हुए हैं।
– प्रतिनिधियों को लिखे एक खुले पत्र में कॉप 27 के अध्यक्ष समेह शौकरी

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सचिवालय के कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने कहा: “हम अभी भी उत्सर्जन में कमी के पैमाने और गति के करीब कहीं नहीं हैं जो हमें 1.5 डिग्री सेल्सियस की दुनिया की ओर ले जाने के लिए आवश्यक हैं।”

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने अपनी विस्तृत इमिशंस गैप रिपोर्ट (उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट) जारी किया, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि वर्तमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के लिए कोई “विश्वसनीय मार्ग” नहीं है। यूएनईपी ने अपनी एडाप्टेशन गैप रिपोर्ट (अनुकूलन अंतर रिपोर्ट) भी जारी की, जिसमें पाया गया कि विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिए वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सहायता, जो कि जरूरत के दसवें हिस्से से ही कम है, के 2030 तक प्रति वर्ष 340 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने दिखा ही दिया है कि यूक्रेन में रूस के युद्ध ने कैसे जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को पटरी से उतार दिया, जिसका मुख्य कारण जीवाश्म ईंधन पर यूरोप की नई निर्भरता का होना है।

कॉप 27 के उद्घाटन से पहले के दिनों में, मिस्र के विदेश मंत्री और कॉप 27 के अध्यक्ष समेह शौकरी ने शिखर सम्मेलन के 40,000 से अधिक प्रतिनिधियों को हताशा से भरा हुआ एक खुला पत्र लिखा। पत्र में लिखा है, “इस वर्ष हम लगातार जोखिमों और एक संकट के ऊपर दूसरे संकट के आने जैसे गंभीर समय में इकट्ठा हुए हैं, बहुपक्षवाद को भू-राजनीतिक स्थितियों से एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, भोजन और ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि हो रही है, कई देशों में सार्वजनिक वित्त और सार्वजनिक ऋण संकट बढ़ रहा है जो कि पहले से ही महामारी के विनाशकारी प्रभावों से जूझने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, इन सभी पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।”

पत्र में यह भी लिखा गया है, “फिर भी जलवायु संकट बरकरार है, किसी अन्य की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है और हमेशा मौजूद है, प्रतिकूल जलवायु प्रभाव, आवृत्ति, तीव्रता और प्रभाव में बढ़ रहे हैं … लाखों लोग अकाल, पानी की कमी, कृषि सिकुड़ने और संसाधनों की कमी के खिलाफ एक तीव्र लड़ाई का सामना कर रहे हैं।
जो अभी भी विकासशील हैं और उनके पास प्रभावी जलवायु कार्रवाई को लागू करके खुद को बचाने के लिए संसाधनों और साधनों की कमी है, उन पर असंगत प्रभाव के साथ, वैश्विक तापमान की हर थोड़ी सी वृद्धि से, प्रभाव केवल बदतर होते जाएंगे।”

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एक रेलवे लाइन के चारों ओर इकट्ठा पानी, जो इस साल की बाढ़ से सबसे बुरी तरह प्रभावित है (फोटो: अख्तर सूमरो / अलामी)

अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ ऑक्सफैम ने गणना की है कि 1991 के बाद से विकासशील देशों में हर साल औसतन 18.9 करोड़ लोग चरम मौसम संबंधी घटनाओं से प्रभावित हुए हैं। इस बीच, रिपोर्ट में पाया गया है कि “2022 की पहली छमाही में सिर्फ छह जीवाश्म ईंधन कंपनियों ने विकासशील देशों में प्रमुख चरम मौसम- और जलवायु से संबंधित घटनाओं की लागत की भरपाई के लिए पर्याप्त प्रयास किया है और अभी भी उनके पास शुद्ध लाभ में लगभग 70 अरब डॉलर है।

कॉप अध्यक्ष के पत्र की प्रतिज्ञाएं “पेरिस समझौते के केंद्र में भव्य सौदेबाजी … जिससे विकासशील देश, उचित वित्तीय सहायता और कार्यान्वयन के अन्य साधनों के बदले में, ऐसे संकट से निपटने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाने पर सहमत हुए जिसके लिए वे बहुत कम जिम्मेदार हैं,”को पुर्नस्थापित करने के लिए हैं… सभी प्रतिभागियों को इस तरह से बातचीत में शामिल होने का आग्रह करने से पहले” यह जलवायु संकट की पृष्ठभूमि और इसकी तात्कालिकता को ध्यान में रखता है।

पैसे का सवाल
पाकिस्तान में इस साल की विनाशकारी बाढ़ ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और क्षति (लॉस एंड डैमेज) से निपटने के लिए आवश्यक धन पर ध्यान केंद्रित किया। लॉस एंड डैमेज से निपटने के लिए किसी भी वैश्विक वित्तपोषण तंत्र को संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में पारित होने की अनुमति देने को अमेरिका के नेतृत्व में अमीर देशों ने दृढ़ता से इनकार कर दिया है। उनको डर है कि यह मुआवजे को लेकर मुकदमेबाजी का कारण बन जाएगा। इस साल विकासशील देश, इस तरह के तंत्र को शुरू करने के लिए ठोस प्रयास कर रहे हैं। परिणाम देखे जाने बाकी हैं, लेकिन आशा कम है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने हाल के एक बयान में कहा, “कॉप 27 को लॉस एंड डैमेज के निपटने के लिए फाइनेंस गैप को बंद करने को लेकर एक स्पष्ट और समयबद्ध रोडमैप प्रदान करना ही चाहिए। यह कॉप 27 में सफलता के लिए एक सेंट्रल लिटमस टेस्ट होगा।”

लंदन स्थित थिंक टैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (आईआईईडी) द्वारा 2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि बांग्लादेश के कुछ क्षेत्रों में, बाढ़ और तूफान से बचने के लिए परिवार पहले से ही प्रति वर्ष औसतन 93 डॉलर खर्च कर रहे हैं। इनमें पशुओं के लिए आश्रय बनाने या मकान के मंजिल को ऊपर उठाने जैसे उपाय शामिल हैं।

लेकिन शमन और अनुकूलन के लिए विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता बहुत ही अपर्याप्त रही है। अमीर देशों ने अभी तक 2020 तक 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष जुटाने के अपने वादे को पूरा नहीं किया है। और अब आवश्यक धन का अनुमान खरबों डॉलर में है। यह पैसा कहां से आ सकता है, नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक द् एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के दीपक दासगुप्ता ने हाल ही में एक वेबिनार में कहा: “ज्यादातर पैसा निजी स्रोतों से आना होगा, लेकिन सार्वजनिक धन, जो विकसित देशों ने वादा किया था, निजी वित्त द्वारा प्रदान किए जा सकने वाले ऋणों के गारंटर के रूप में महत्वपूर्ण है।” और सवाल यह भी है कि कितना सार्वजनिक वित्त
(पब्लिक मनी) अनुदान बनाम ऋण के रूप में है।

सफलता को लेकर कमजोर पूर्वानुमान
इस सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले देश मिस्र को पहले से पता है कि इस वर्ष विकसित और विकासशील देशों के बीच की दरार और गहरी हो चुकी है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हाल के महीनों में कॉप 27 पर आम सहमति बनाने के लिए अनौपचारिक बैठकें बुलाई गईं। जी 20 पर्यावरण मंत्रियों की बैठक और आईएमएफ व विश्व बैंक समूह द्वारा अधिक जलवायु निधि जुटाने के लिए बैठकें बुलाई गईं। ये कोशिशें हर तरह से विफल साबित हुई हैं।

कॉप वह जगह है जहां प्रदूषण फैलाने वालों को कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए और उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

हरजीत सिंह, क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल

लेकिन पर्यवेक्षकों और जलवायु के क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने अपनी तरफ से जोर लगाना जारी रखा है। क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल (जलवायु पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों का एक वैश्विक समूह) में ग्लोबल पॉलिटिकल स्ट्रैटेजी के प्रमुख हरजीत सिंह ने नवंबर की शुरुआत में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा: “कॉप 27 की सफलता की परीक्षा तब होगी जब यह, जलवायु के लिहाज से जोखिम उठाने वाले देशों और तीन अरब से अधिक लोगों के संदर्भ में जवाब दे…समृद्ध सरकारों को प्रभावित होने वाले लोगों को सहायता देने और जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध होकर जलवायु प्रेरित लॉस एंड डैमेज को लेकर चल रहे अन्याय को दूर करने के लिए रचनात्मक तरीके से संलग्न होना चाहिए। कॉप वह जगह है जहां प्रदूषण फैलाने वालों को कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए और उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।”

हाल के शिखर सम्मेलनों की तरह, कॉप 27 पहले दो दिनों के लिए एक उच्च-स्तरीय खंड के साथ शुरू होता है, जहां सरकार के प्रमुख और मंत्री अपनी उम्मीदों और शुरुआती वादों को प्रस्तुत करते हैं। इसके बाद सख्त बातचीत शुरू होती है। कॉप 27 संक्रमण (हरित अर्थव्यवस्थाओं के लिए), खाद्य सुरक्षा, जलवायु और विकास के लिए नवीन वित्त, ऊर्जा के भविष्य में निवेश, जल सुरक्षा और कमजोर समुदायों की बचाए रखने के प्रयास जैसे विषयों पर गोलमेज सम्मेलन आयोजित करेगा।

क्षेत्रीय अपेक्षाएं
कॉप 27 में लॉस एंड डैमेज के लिए वित्त पर जोर देने के मामले में पाकिस्तान सरकार द्वारा एक प्रमुख भूमिका निभाने की उम्मीद है। इसकी स्थिति मजबूत होगी क्योंकि इस वर्ष इसके पास संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में विकासशील देशों के सबसे बड़े समूह ‘जी 77 प्लस चीन’ की अध्यक्षता- रोटेशन के आधार पर- है, जो एक ब्लॉक के रूप में वार्ता आयोजित करता है।

भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कॉप 27 के शुरू होने से कुछ दिन पहले एक संवाददाता सम्मेलन में कहा: “हम जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण स्पष्टता चाहते हैं। और जलवायु वित्त का गठन करने वाली स्पष्ट परिभाषाएं चाहते हैं। पश्चिम द्वारा दिए जा रहे धन पर कई दावे किए जा रहे हैं लेकिन ऋण और अनुदान स्पष्ट रूप से अलग होने चाहिए।”

साभार: www.thethirdpole.net

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