भारत पहुंचेगा चीता और जंगल में शुरू हो जाएगी नई तरह की जंग, वन रक्षकों की उड़ी है नींद

भारत पहुंचेगा चीता और जंगल में शुरू हो जाएगी नई तरह की जंग, वन रक्षकों की उड़ी है नींद

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नई दिल्ली। मध्य प्रदेश का कुनो नेशनल पार्क हमेशा टूरिस्ट को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। अब यहां अगले कुछ दिनों में चीतों की दहाड़ सुनाई देगी। इसी के साथ यहां एक खास जंग भी शुरू हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां के जंगल में अंतर-महाद्वीपीय स्थानान्तरण के जरिए चीते लाने की तैयारी की जा रही है। हालांकि, चीतों के यहां आने से पहले इस जंगल में रहने वाले तेंदुओं को लेकर फॉरेस्ट ऑफिसर परेशान हैं। वजह ये है कि वन अधिकारियों को डर है कि दूसरे देश से आने वाले चीतों को अपने इलाके में जगह देने के लिए तेंदुए कतई तैयार नहीं होंगे। ऐसे में चीतों और तेंदुए के बीच जंग देखने को मिल सकती है। ऐसे हालात नहीं हों इसके लिए मध्य प्रदेश के वन अधिकारी तैयारी में जुटे हैं। सीसीटीवी कैमरे, बड़े-बड़े बाड़े, लंबे और ऊंचे टावर बनाए गए हैं। जिससे किसी भी विपरीत स्थिति से निपटा जा सके। कुनो नेशनल पार्क में चीतों के आने से पहले ही फॉरेस्ट अधिकारी सभी सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करना चाहते हैं। जिससे विदेश से आने वाले चीतों की यहां रहने वाले तेंदुओं से रक्षा की जा सके। यहां के जंगल में कई तेंदुए काफी बड़े आकार में हैं। इसी वजह से जंगल में 12 किलोमीटर लंबी और 9 फुट ऊंची बाड़ लगाई गई है, जिसमें बिजली का करंट भी छोड़ा गया है। इसके साथ ही 24Û7 सीसीटीवी के जरिए निगरानी की जाएगी। इसके साथ ही ड्रॉप डोर पिंजड़ा भी बनाया गया है। इस कवायद की वजह है कि चीतों को उनके नए घर में बसने के लिए कुछ हद तक सुरक्षा मिल सके।

जंगल में तेंदुओं की बड़ी संख्या
जानकारों के मुताबिक, जब तक इन तेंदुओं को हटाया नहीं जाता तब तक चीतों को यहां नहीं लाया जा सकता। ऐसा इसलिए क्योंकि चीतों से ये काफी बड़े होते हैं और उन्हें घायल या मार भी सकते हैं। कुनो नेशनल पार्क में तेंदुओं का एरिया बहुत अधिक है। यहां के ग्रामीणों ने बताया कि हर 100 वर्ग किमी में 9 तेंदुए पाए जाते हैं। अगर चीते यहां आते हैं तो ऐसी आशंका है कि तेंदुए उन्हें निशाना बना सकते हैं। इसके पीछे मुख्य वजह शिकार को लेकर प्रतिस्पर्धा हो सकती है।

नामीबिया से लाए जाने वाले 12 चीतों के लिए बनाए गए बाड़े
वहीं प्रोजेक्ट की देखरेख कर रहे जिला वन अधिकारी प्रकाश वर्मा ने हमारे सहयोगी अखबार टीओआई को बताया कि उनके पास बैक-अप योजनाएं हैं। हम लेग-होल्ड ट्रैप के लिए जा सकते हैं। पशु चिकित्सक उन्हें शांत करने के लिए हाथियों या दूसरे गाड़ियों पर जा सकते हैं। प्रोजेक्ट पर दिन-रात काम कर रहे एसडीओ अमृतांशु सिंह ने डीएफओ से बात की है। परियोजना से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि तेंदुओं और चीतों के बीच संघर्ष हो सकता है, लेकिन बंद बाड़े से चीतों को सुरक्षा मिलेगी। तेंदुओं को रोकने के लिए लगाए गए बाड़ लगभग 12 किमी लंबी और 9 फीट ऊंची है, जिसके शीर्ष पर बिजली के ओवरहैंग हैं। पहले फेज में नामीबिया से लाए जाने वाले 12 चीतों को रखने के लिए बाड़े को आठ हिस्सों में बांटा गया है।

हर 2 किमी पर एक वॉच टॉवर, सीसीटीवी भी
परियोजना की कार्य योजना रिपोर्ट के मुताबिक, जंगल में बाघ, तेंदुओं और चीतों के बीच संघर्ष की संभावना जताई गई है। हालांकि, एक बार चीतों की आबादी यहां स्थापित हो जाएगी तो परस्पर संघर्ष और अवैध शिकार का ज्यादा खतरा नहीं होगा। फिलहाल जंगल में तेंदुओं की मौजूदा स्थिति स्पष्ट नहीं है। हाई-रेंज सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से 6 वर्ग किमी के बाड़े को चौबीसों घंटे नजर रखा जाएगा। हर 2 किमी पर एक वॉच टॉवर है। बाड़े 0.7 वर्ग किमी से लेकर 1.1 वर्ग किमी तक हैं। 38.7 करोड़ रुपये के बजट में से 6 करोड़ रुपये बाड़े, वहां पहुंचने वाले रास्ते और वन अधिकारियों के प्रशिक्षण पर खर्च किए जा रहे हैं।



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Samachaar India

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