सीएम योगी ने किया देश के पहले तंबाकू कंट्रोल सेंटर का उद्धाटन, तंबाकू नियंत्रण विषय पर आयोजित संगोष्ठी को भी किया संबोधित

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गोरखपुर।  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सिर्फ डिग्री हासिल कर लेने से चिकित्सक का कार्य पूर्ण नहीं हो जाता। डिग्री हासिल करने के बाद आगे विशाल संभावनाओं वाला क्षेत्र है जहां चिकित्सक समाज हित में बहुत कुछ नया कर सकते हैं।

सीएम योगी गुरुवार सुबह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) गोरखपुर में नवनिर्मित ऑडिटोरियम व नेशनल सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च इन टोबैको कंट्रोल का उद्घाटन करने के बाद यहां तंबाकू नियंत्रण विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हर मरीज डॉक्टर के लिए रिसर्च का भी विषय होता है। एक डॉक्टर यदि एक वर्ष ओपीडी में मरीजों को देखता है, मरीजों को सलाह देता है तो इसके जरिये उसे एक नया व व्यावहारिक पब्लिकेशन प्राप्त हो जाता है।

मुख्यमंत्री ने डॉक्टरों से अपील की कि वे अपने क्षेत्र में कुछ न कुछ नया करने का भी प्रयास करें। इनोवेशन और रिसर्च ही योग्यता का आधार है। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 दी है।

सीएम योगी ने इस दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए लंबे समय तक अभिशाप बनी रही इंसेफेलाइटिस का जिक्र करते हुए कहा कि 1977-78 में आई इस बीमारी से 40 साल में 50 हजार बच्चों की मौत हो गई। पर, 40 साल में इस पर एक भी रिसर्च पेपर देखने को नहीं मिला। हद तो इस बात की भी रही कि जापान से इंसेफेलाइटिस के लिए वैक्सीन 1906 में बना लिया था लेकिन भारत में यह उपलब्ध हुई सौ साल बाद 2006 में। जबकि कोरोना काल में महज नौ माह में पीएम मोदी के मार्गदर्शन में देश में दो-दो स्वदेशी वैक्सीन तैयार हो गईं। यही नहीं देश मे कोरोना वैक्सीन की दो सौ करोड़ डोज दी जा चुकी हैं।

सीएम योगी ने कहा कि 2017 में जब वह मुख्यमंत्री बने तो उनके सामने इंसेफेलाइटिस को नियंत्रित करने की चुनौती थी। इसके पहले जब वह सांसद थे तो सदन में मुद्दे उठाते थे, सड़कों पर आंदोलन करते थे। उन्होंने कहा कि इंसेफेलाइटिस पर जारी संघर्ष के कारण ही पीएम मोदी ने गोरखपुर को एम्स दिया था।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इंसेफेलाइटिस पर नियंत्रण के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल, सीएससी-पीएचसी स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाएं तो सुदृढ़ की ही गईं, सरकार ने स्वास्थ्य विभाग को नोडल बनाकर 9 विभागों को एक साथ जोड़ा। स्वच्छता, शुद्ध पेयजल, जागरूकता के माध्यम से बचाव पक्ष को भी इलाज जितना ही महत्वपूर्ण माना। समन्वित प्रयासों का परिणाम है कि चार साल में ही इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों में 95 फीसद तक कमी आ चुकी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इंसेफेलाइटिस पर प्रभावी नियंत्रण प्राप्त कर लिया गया है। दो साल कोरोना से प्रभावित नहीं होते तो इंसेफेलाइटिस का पूर्ण उन्मूलन कर लिया गया होता।





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Samachaar India

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