क्या दुनिया में फिर सताने लगा है 2008 जैसी मंदी का खतरा, जानिए क्या होती है आर्थिक मंदी..?

क्या दुनिया में फिर सताने लगा है 2008 जैसी मंदी का खतरा, जानिए क्या होती है आर्थिक मंदी..?

[ad_1]

नई दिल्ली। किसी भी देश का विकास वहां की अर्थव्यवस्था पर निर्भर होता है। जब अर्थव्यवस्था में लगातार कुछ समय तक (कम से कम तीन क्वार्टर तक) विकास थम जाता है, रोजगार कम हो जाता है, महंगाई बढ़ने लगती है और लोगों की आमदनी अप्रत्याशित रूप से घटने लगती है तो इस स्थिति को ही आर्थिक मंदी का नाम दिया जाता है। पूरी दुनिया में जब से कोरोना संकट शुरू हुआ है उसके बाद से अलग-अलग अर्थव्यवस्थाओं के मंदी की चपेट में आने का खतरा बढ़ गया है। रूस और युक्रेन की लड़ाई ने इस नाजुक समय पर आग में घी का काम किया है। अब बाजार के ज्यादातर जानकार मानने लगे हैं कि आने वाले कुछ महीनों में पूरी दुनिया में साल 2008 जैसी मंदी देखने को मिल सकती है।

पिछले दो सालों से कोरोना संकट से जूझ रही पूरी दुनिया 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई शुरू होने के बाद से जैसे अस्त-व्यस्त हो गई है। पूरी दुनिया पर एक बार फिर मंदी की मार पड़ने की आशंका गहरा गई है। जब से इस लड़ाई का आगाज हुआ है तब से लेकर अब तक पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं पर इसका असर देखने को मिल रहा है। इस लड़ाई के कारण पहले से ही कोरोना से जूझ रही अर्थव्यवस्थाओं के सामने सप्लाई चेन का संकट भी पैदा हो गया है जिससे अमेरिका, युरोप और एशिया हर महाद्वीप के देश प्रभावित हो रहे हैं। अब बाजार को एक बार फिर 2008 जैसी मंदी का खतरा सताने लगा है। दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति एलन मस्क भी मंदी के इन खतरों की आशंका से सहमे हुए हैं। भारतीय बाजारों में भी उठा-पठक के बीच कारोबार चल रहा है।

अमेरिका और यूरोपीय देशों पर दिखेगा जबरदस्त असर
ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म नोमुरा होल्डिंग्स ने भी मंदी को लेकर दुनिया के बाजारों को सचेत किया है। नोमुरा की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 12 महीने के भीतर दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आने से खुद को नहीं बचा पायेंगी। इस रिपोर्ट के अनुसार अलग-अलग देशों के केन्द्रीय बैंकों की सख्त नीतियां और आम आदमी के जीवनयापन की बढ़ती लागत पूरी दुनिया को एक बार फिर 2008 जैसी मंदी की ओर धकेल रहे हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर मंदी का खतरा गहरा गया है।

दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों की सख्त नीतियां हमें ले जा रही हैं मंदी की ओर
नोमुरा की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पूरी दुनिया के सेंट्रल बैंक महंगाई पर लगाम लगाने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं। ऐसा महंगाई को काबू करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए किया जा रहा है, पर इससे दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं का कबाड़ा निकल सकता है। सैंट्रल बैंक की सख्त नीतियों के कारण ग्लोबल ग्रोथ पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। पूरी दुनिया में जॉब्स कम हो रहे हैं। लोगों की आमदनी घट रही है। लोग जो कमा रहे हैं वह भी महंगाई की भेंट चढ़ जा रहा है। ऐसे में इकोनॉमी की पूरी ग्रोथ खटाई में पड़ती नजर आ रही है।

मंदी का अलग-अलग देशों पर पड़ेगा अलग-अलग असर
नोमुरा की रिपोर्ट के अनुसार महंगाई की ऊंची दर फिलहाल कम नहीं होने वाली है। महंगाई का दबाव अब सिर्फ कमॉडिटीज के बाजार तक सीमित नहीं रहा है। अमेरिका में सर्विस सेक्टर और नौकरीपेशा भी अब इसकी चपेट में आ रहे हैं। अमेरिका में महंगाई पिछले 40 साल के आंकड़ों को पार कर चुका है। नोमुरा की रिपोर्ट के मुताबिक अलग-अलग देशों पर मंदी का असर अलग-अलग तरीके से पड़ सकता है। ब्रोकिंग फर्म का यह मानना है कि साल 2022 की अंतिम तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर के बीच अमेरिका समेत दुनिया के कई देश मंदी की चपेट में आ सकते हैं। एक बार मंदी की चपेट में आने के बाद इसका असर छह महीनों तक देखने को मिल सकता है।

रूस रूठा तो यूरोप परेशान होगा
नोमुरा की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह से बीते कुछ महीनों में यूरोपीय देश रूस के खिलाफ बयानबाजी करते आ रहे हैं आने वाले समय मे इसका प्रतिकूल असर देखने को मिल सकता है। अगर रूस ने नाराज होकर यूरोपीय देशों की गैस सप्लाई रोक दिया तो यूरोपीय देशों को मंदी की मार से कोई नहीं बचा सकता है। अनुमानों के मुताबिक आने वाले एक से दो सालों में यूरोप की अर्थव्यवस्था में एक फीसदी तक की गिरावट देखने को मिली सकती है। कनाडा, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे मजबूत देशों पर ब्याज दरों के बढ़ने का प्रतिकूल असर पड़ सकता है। दक्षिण कोरिया में तो इसी साल अर्थव्यवस्था में 2 से 2.5 प्रतिशत तक की कमी आने की संभावना है।

भारत और चीन पर कैसा होगा मंदी का असर.?
दुनिया के दो सबसे बड़े बाजारों भारत और चीन की बात करें तो नोमुरा की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की इकोनॉमी की अनिश्चतता का असर यहां भी देखने को मिलेगा। राहत की बात केवल इतनी है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की तुलना में इस ग्लोबल मंदी का असर भारत और चीन पर कम देखने को मिलेगा। चीन अपनी सरकारी नीतियों से मंदी से निपटने में बहुत हद तक कामयाब होगा ऐसा नोमुरा का मानना है। हालांकि, कोविड के कारण अर्थव्यवस्था पर तनाव बने रहने की बात भी कही गई है। वहीं अगर बात भारत की करें तो यहां थोक महंगाई दर साल 1991 के स्तर (लगभग 16 प्रतिशत) पर चला गया है। इससे चिंताएं बढ़ी हैं। यहां रिजर्व बैंक ने एक ही महीने में दो बार रेपो रेट बढ़ाकर महंगाई पर काबू करने की स्ट्रेटेजी अपनाई है पर इससे आम लोगों की परेशानी कम नहीं हुई है। डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार टूट रहा है और ऐतिहासिक रूप से अपने निचले स्तर पर कारोबार कर रहा है। पर, फिर भी नोमुरा का मानना है कि भारत इस मंदी से निपटने में सक्षम होगा। इसका कारण यह है कि यहां के घरेलु बाजार से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती रहेगी।

शेयर बाजारों पर खतरा बना रहेगा
नोमुरा की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के स्टॉक मार्केट में उठापटक का दौर जारी रहेगा। ब्रोकरेज फर्म का साफ मानना है कि फिलहाल शेयर बाजार बुरे दौर में ही रहने वाले हैं। मंदी की आशंका के बीच बाजार में और अधिक गिरावट देखने को मिल सकती है। नोमुरा की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर दुनिया 2008 जैसी मंदी की चपेट में आ जाती है तो अमेरिका जैसे देश की अर्थव्यवस्था भी लगभग 1.5 प्रतिशत तक टूट जाएगी। ऐसे में पहले से कोरोना महामारी से बेहाल दुनिया के लिए संभावित मंदी परेशानियों की नई शृंखला लेकर आ सकती है।



[ad_2]

Source link

Samachaar India

Related articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *