भारत की जी-20 अध्यक्षता: उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बहुत ही बड़ा पल

भारत की जी-20 अध्यक्षता: उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बहुत ही बड़ा पल

अमिताभ कांत
भारत एक महीने से भी कम वक्त में, 1 दिसंबर को जी-20 की अध्यक्षता लेने जा रहा है। इस दौरान वो एक बहुत ही ख़ास स्थिति में है जहां वो दुनिया भर के विकासशील देशों की चिंताओं और वरीयताओं के हक़ में आवाज़ उठा सकता है। इंडोनेशिया-भारत-ब्राजील की जो जी-20 वाली तिकड़ी है, उसके केंद्र में भारत खड़ा है। इस प्रतिष्ठित अंतर-सरकारी मंच के 14 साल के इतिहास में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के नेतृत्व में अपनी तरह की ये पहली तिकड़ी है। तकरीबन 1.4 अरब की आबादी के साथ, दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी बढ़ती अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत के पास गजब का आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रसूख है, जिससे वो ग्लोबल नैरेटिव का प्रभावी ढंग से मार्गदर्शन कर सकता है ताकि आज की वास्तविकताओं का बेहतर ढंग से प्रतिनिधित्व कर सके।

जी-20 का पल भारत के लिए एक ऐसा मौका है जहां वो एक अंतरराष्ट्रीय एजेंडा निर्मित कर सकता है और उसे आगे बढ़ा सकता है। ये एजेंडा है – लाइफ (पर्यावरण के लिए लाइफस्टाइल), डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, महिला सशक्तिकरण और तकनीक आधारित विकास पर गहरा ध्यान देते हुए समावेशी, न्यायसंगत और स्थायी विकास को आगे की ओर रखना।

हालांकि, तेजी से ध्रुवीकृत हो रही इस विश्व व्यवस्था में इन प्राथमिकताओं को उभारना कोई आसान काम नहीं है। जी-20 की भारतीय अध्यक्षता ऐसे समय पर आई है जब कुछ अन्य वैश्विक चिंताओं का ग्रहण लगा हुआ है। ये चिंताएं रूस और यूक्रेन युद्ध के दुष्परिणामों और व्यापक आर्थिक मंदी से लेकर विकासशील देशों को प्रभावित करने वाले गंभीर ऋण संकट तक जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की पृष्ठभूमि में देखें तो कोविड-19 महामारी के कारण तात्कालिक आपदा शमन प्रयासों से दशकों की विकास संबंधी प्रगति में भारी बाधा पड़ी है। ऐसे में सतत विकास को लेकर भारत का विजन ही इस वक्त की जरूरत है, जो कि वैश्विक अंतर्संबंधों, साझा जिम्मेदारी और एक सर्कुलर इकोनॉमी में निहित है।

इस मिशन को उभारने के लिए भारत जी-20 की अपनी अध्यक्षता की थीम के तौर पर वसुधैव कुटुम्बकम या एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य को अपना रहा है। एक प्राचीन संस्कृत पुस्तक महाउपनिषद् से ली गई ये फिलॉसफी 2014 में भारत की डिप्लोमैटिक विश्वदृष्टि में दिखती है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के अपने ऐतिहासिक संबोधन में विश्व परिवार की बात की थी। उस समय प्रधानमंत्री जी-4 गठबंधन के लिए एक बड़ी भूमिका का आह्वान कर रहे थे, और वे इस नीति को निल बटे सन्नाटा के तौर पर न देखने की जरूरत पर बल दे रहे थे। आज, ये संदेश पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक बना हुआ है। क्योंकि मानवता आज तक के अपने सबसे बड़े अस्तित्व के खतरे से जूझ रही है। वो है – जलवायु परिवर्तन का विनाशकारी व्यापक असर। भारत को उम्मीद है कि अपनी थीम से वो दुनिया भर के नेताओं और वैश्विक नागरिकों को ये याद दिलाएगा कि सबसे छोटे सूक्ष्मजीव से लेकर सबसे बड़े सभ्यागत इकोसिस्टम तक, जीवन के तमाम रूप परस्पर जुड़े हुए हैं। और ये कि कैसे ये साझा भविष्य, एक बराबर जिम्मेदारी और व्यक्तिगत हस्तक्षेप को जन्म देता है।

भारत का जी-20 वाला लोगो ऐसी ही फिलॉसफी की बात करता है। कमल, जो कि देश का राष्ट्रीय फूल है और विपत्तियों के बीच भी विकास का प्रतीक है, उसमें बैठी पृथ्वी की छवि, दरअसल जीवन को लेकर भारत की प्रो-प्लैनेट अप्रोच की बात करती है। इसके लोगो में केसरिया, सफेद और हरे रंग का शानदार मिश्रण दरअसल विविधता और समावेश के सिद्धांतों को दर्शाता है जो कि उसके सांस्कृतिक लोकाचार को रेखांकित करता है। भारत लंबे समय से सार्वभौमिक सद्भाव और सहयोग का वाहक रहा है और आगे भी रहेगा।

लाइफ (पर्यावरण के लिए लाइफस्टाइल) की अवधारणा इन सिद्धांतों के साथ निकटता से जुड़ी हुई है। नवंबर 2021 में ग्लासगो में सीओपी-26 में प्रधानमंत्री ने इसका परिचय कराया था। पिछले महीने, इस मिशन को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेज़ की उपस्थिति में आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री द्वारा गुजरात की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर इसे लॉन्च किया गया था। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि कुल मिलाकर इस आंदोलन का मकसद जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई को लोकतांत्रिक बनाना है जिसमें हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार योगदान दे सकता है। सामाजिक और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर, खपत और उत्पादन के पैटर्न में बदलाव को ध्यान में रखते हुए, लाइफ से उम्मीद है कि वो दुनिया भर में बड़े पैमाने पर पर्यावरण के लिहाज से टिकाऊ प्रथाओं को प्रोत्साहित करेगा। जी-20 की अध्यक्षता में भारत को अपने सामंजस्यपूर्ण दर्शन और प्राचीन सभ्यता संबंधी उन परंपराओं को दिखाने का मौका मिलेगा जिन्होंने पीढिय़ों-पीढिय़ों से पृथ्वी के साथ अपने समग्र संबंध को कायम रखा है। टिकाऊ प्रथाओं का समृद्ध इतिहास भारत को एक ऐसे विशिष्ट स्थान पर रखता है जहां वो जलवायु और विकास एजेंडे को एकीकृत करने के बारे में बात कर सके।

डिजिटल मोर्चे की बात करें तो भारत मिसाल कायम करते हुए नेतृत्व करने को तैयार है। इसकी डिजिटल कामयाबी की कहानी खुद-ब-खुद बोलती है। टेक्नोलॉजी प्रेरित समाधानों के लिए मानव-केंद्रित दृष्टिकोण में उसका बुनियादी भरोसा, कई प्रमुख क्षेत्रों पर ज्यादा बड़ा ध्यान दिला सकता है। ये प्रमुख क्षेत्र हैं – पब्लिक डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय समावेशन और कृषि से लेकर शिक्षा तक टेक्नोलॉजी युक्त विकास। भारत एक ऐसा देश है जहां रियल टाइम डिजिटल लेनदेनों की दुनिया में सबसे बड़ी संख्या (2022 तक 48 बिलियन) है, और जो सबसे बड़ी बायोमेट्रिक आईडी सिस्टम (आधार) का घर है। वो डिजिटल वित्तीय समावेशन, डिजिटल पहचान और सहमति आधारित ढांचों के इर्द गिर्द बातचीत को आकार देने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थिति में है। इसके अलावा, भारत अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी नतीजे देने के लिए प्रतिबद्ध है। इनमें महिला सशक्तिकरण, 2030 एसडीजी की दिशा में तेजी से प्रगति, कई क्षेत्रों में तकनीक आधारित विकास, हरित हाइड्रोजन, आपदा जोखिम में कमी, खाद्य सुरक्षा और पोषण को बढ़ाना, और बहुपक्षीय सुधार आदि शामिल है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की है कि ऋण संकट भारत की जी-20 मुद्दों की सूची में शुमार होगा, ऐसे में ये स्पष्ट है कि ये मुल्क ग्लोबल साउथ के हितों के लिए एक प्रभावी झरोखा बनने को तैयार है और वो विकसित दुनिया की अलग-थलग चिंताओं को व्यापक एजेंडे पर हावी होने नहीं देगा।

इस क्षेत्र और दुनिया भर में भारत की एक मजबूत राजनीतिक उपस्थिति है। इसके साथ भारत के पास दुनिया के लिए एक ज्यादा समावेशी, शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य की मध्यस्थता करने हेतु अपने भारी राजनयिक रसूख का लाभ उठाने का अवसर है। साथ में उम्मीद है कि वन अर्थ. वन फैमिली. वन फ्यूचर की अपनी थीम और लोगो के साथ भारत जी-20 की अध्यक्षता से एक विलक्षण, शक्तिशाली संदेश देगा। वो ये कि – अब हम सभी के लिए वक्त आ चुका है कि हम कदम उठाएं और इस साझे ग्रह की जिम्मेदारी लें।
[लेखक भारत के जी-20 शेरपा हैं। वे पूर्व में नीति आयोग के सीईओ रहे हैं।]

Samachaar India

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *