उत्तराखंड के गांवों की बदलेगी सूरत, मोदी सरकार देने जा रही है 562 करोड़

उत्तराखंड के गांवों की बदलेगी सूरत, मोदी सरकार देने जा रही है 562 करोड़

पंचायतों में गोबर गैस सहित होंगे कई काम, जल शक्ति मंत्रालय ने पास किया बजट

देहरादून। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से इस साल राज्य को 562 करोड़ मिलेंगे। इसमें 430 करोड़ स्वच्छ भारत मिशन का भी शामिल है, जिससे गांवों की सूरत बदलने वाली है। पेयजल विभाग ने इसकी तैयारी पूरी कर ली है, जिसके लिए एक्शन प्लान बनाया गया है। प्रदेश के सभी गांव ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) की श्रेणी में आ चुके हैं। इसके बाद ओडीएफ प्लस के लिए भी तेजी से काम किया जा रहा है। राज्य के करीब छह हजार गांव ओडीएफ प्लस बन चुके हैं। सचिव पेयजल नितेश झा ने बताया कि इस बार प्रदेश को स्वच्छ भारत मिशन में 430 करोड़ रुपये देने पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने स्वीकृति दे दी है। गत वर्ष यह राशि 92.61 करोड़ थी। इससे प्रदेश के गांवों में मिशन के तहत कार्यों में तेजी आएगी। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की राह आसान होगी। पेयजल निगम के एसई अनुज कौशिक ने बताया कि गत वर्ष की 92.61 करोड़ की रुकी हुई 23 करोड़ की दूसरी किश्त भी जारी हो गई है। बताया कि इस साल के बजट से काम के लिए एक्शन प्लान तैयार किया गया है। पेयजल एवं पंचायती राज सचिव नितेश झा ने कहा हमने मंत्रालय को कुल 562.05 करोड़ का प्रस्ताव भेजा था, जिसे स्वीकृति मिल गई है। इसमें स्वच्छ भारत मिशन का बजट इस बार 430 करोड़ मिलेगा। पंचायतों के स्तर पर इससे काफी सुधार के काम किए जाएंगे।

 

गांवों में यह होंगे बदलाव
ओडीएफ प्लस में शामिल होने के लिए गांवों में फीकल स्लज मैनेजमेंट का काम होगा।
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत सभी 22 ब्लॉक में प्लास्टिक कचरे के लिए कांपेक्टर लगाए जाएंगे।
पंचायतों में कचरा निस्तारण के लिए ई-वाहन खरीदे जाएंगे।
यात्रा सीजन में सड़क किनारे गांवों की सफाई के लिए जटायु सक्शन मशीन खरीदी जाने का प्रस्ताव।
गोबरधन योजना के तहत पौड़ी के बाद अब ऊधमसिंह नगर व नैनीताल में भी प्लांट लगेंगे। इसके बाद बाकी जिलों में काम किया जाएगा।
ग्राम पंचायतों में लिक्विड मैनेजमेंट का काम होगा।

करीब छह हजार गांव हैं ओडीएफ प्लस

प्रदेश के करीब छह हजार गांव ओडीएफ प्लस श्रेणी में आ चुके हैं। यहां वेस्ट मैनेजमेंट का काम पंचायतों के स्तर से कराया जा रहा है। जैविक कचरे को गांवों में ही एक गड्ढे के माध्यम से निपटारा कर खाद बनाया जाता है जबकि प्लास्टिक कचरे को गांव से ब्लॉक स्तर पर भेजा जाता है, जहां इसका कांपेक्टर के माध्यम से निस्तारण किया जा रहा है।

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